मुस्कुरा रहा है वह छद्म हँसी
कर रहा है बात पर बात
बता रहा है
सबको अपने मन की बात
कर रहा है सभा दर सभा
सुना है अकेला है वह
कोई नहीं है उसका
फिर भी अपने लाव लश्कर के संग
खाता है लंच और डिनर
नहीं है उसे कोई परवाह
कि लापता हो रहे हैं बच्चे
खट रहीं हैं औरतें
धर्म के नाम पर जंग जारी है
सारे वादे ताख पर रख
वह धूम रहा है
आसमान-आसमान
बातों का हुनर आता है उसे
धरती से फलक तक
नाप रहा है आसमान की थाह
बदल रहा है रोज नई पोशाकें
इधर प्रजा कर रही है त्राहि त्राहि
न जाने कब पड़ेगी नजर?
भूखे प्यासों पर उसकी
सेल्फी का लग गया है शौक उसको
हँसता हुआ भी दिखाई नहीं देता कभी
पूरी तरह आत्ममुग्ध है वह
क्या हँसते हुए देखा है कोई तानाशाह?